शोधकर्ता लैम्बर्ट के मुताबिक, प्रयोग में यह स्पष्ट हुआ है कि कैसे नए चैलेंज और अनुभव महसूस करने के बाद दिमाग में बदलाव आता है। चूहे अपने घर और लैब दोनों जगह रहने के बाद कैसा महसूस करते हैं, यह भी जानने की कोशिश की जा रही है।
शोधकर्ता लैम्बर्ट ने टीम के साथ मिलकर रोबोट कार किट तैयार की है। इसमें ड्राइवर कंपार्टमेंट की जगह खाली फूड कंटेनर लगाया गया है। इसकी तली में एल्युमिनियम प्लेट का इस्तेमाल हुआ है। इसके अलावा कॉपर वायर भी लगाया गया है, जिसकी मदद से कार दाएं, बाएं और सीधी दिशा तय करती है।
जब कार में एल्युमिनियम प्लेट पर चूहे को रखा जाता है तो वह वायर को छूता है। सर्किट के पूरे होते ही कार चलने लगती है और चूहे जो दिशा चुनते हैं वह उस ओर चलती है। शोध में कई महीनों तक 16 चूहों को ट्रेनिंग दी गई है। 150 सेंटीमेंटीर के दायरे में उनका कारण प्रशिक्षण पूरा हुआ है।
बिहेवियरल ब्रेन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, प्रयोग के बाद चूहों के मल की जांच की गई। इसमें कॉर्टिकोस्टेरॉन और डीहाइड्रोपियनस्टेरॉन जैसे स्ट्रेस हॉर्मोन का स्तर कम मिला है। जब ट्रेनिंग के लिए इन्हें तैयार किया जा रहा है तो स्ट्रेस हार्मोन डीहाइड्रोपियनस्टेरॉन की स्तर बढ़ गया था।