प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति ने कहा कि असहिष्णु शक्तियों ने पिछले चार वर्षों में सिर उठाया है और कुछ अशांति फैलाई है और इसने राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हमले किए| उन्होंने कहा कि "ऐसी शक्तियों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है|" आगे उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा है कि इन तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट आगे बढ़ती रहेगी|
मुखर्जी ने 70वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रविवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा, "महिलाओं और बच्चों को दी गई सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है| एक महिला या बच्चे के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है| यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते|"
उन्होंने कहा, "आजादी के बाद हमारे संस्थापकों द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने आंतरिक और बाहरी अनेक जोखिम सहन किए हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है| संसद के अभी सम्पन्न हुए सत्र में निष्पक्षता और श्रेष्ठ परिचर्चाओं के बीच वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक का पारित होना हमारी लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गर्व करने के लिए पर्याप्त है|"

राष्ट्रपति ने कहा, "हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है, बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है| मेरे विशिष्ट पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पचास वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कहा था- 'हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया है| यह मानककृत विचारशीलता और कार्य के बढ़ते दबावों के समक्ष हमारी वैयक्तिता को बनाए रखने में सहायता करेगा.. लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं और खतरनाक हालात को रोकती हैं| एक प्रभावी लोकतंत्र में, इसके सदस्यों को विधि और विधिक शक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए| कोई व्यक्ति, कोई समूह स्वयं विधि प्रदाता नहीं बन सकता|"