नागरिकता बिल में केंद्र सरकार के प्रस्तावित संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। नागरिकता संशोधन बिल का पूर्वोत्तर के राज्य विरोध कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ बता रहे हैं। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद असम में विरोध-प्रदर्शन भी हुए थे। लेकिन इसमें जिन लोगों के नाम नहीं हैं, उन्हें सरकार ने शिकायत का मौका भी दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने एनआरसी से बाहर हुए लोगों के साथ सख्ती बरतने पर रोक लगा दी थी। अब सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लाने जा रही है, तो यह तय है कि संसद के दोनों सदनों में इसके खिलाफ स्वर मुखर जरूर होंगे।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
कम हो जाएगी निवास अवधि
भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई सभाओं के दौरान भी नागरिकता कानून में संशोधन की बात कर चुके हैं। इस कानून के विरोध में सबसे मुखर आवाज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है। वे पहले से ही पश्चिम बंगाल में एनआरसी को लागू करने से इनकार करती रही हैं। इस विधेयक के पास होने से वर्तमान कानून में बदलाव आएगा। जानिए, इसका फायदा किसे मिलेगा और देश में रह रहे करोड़ों लोगों पर इसका क्या असर होगा।
नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध क्यों?
वैसे तो नागरिकता संशोधन विधेयक पूरे देश में लागू किया जाना है लेकिन इसका विरोध पूर्वोत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं. इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीक़े से आ कर बस जा रहे हैं.
विरोध इस बात का है कि वर्तमान सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की फिराक में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, संसद के एजेंडे में इसे सूचीबद्ध करने के साथ ही पूर्वोत्तर में स्थानीय समूहों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. हालांकि, अब तक हिंसा की कोई ख़बर नहीं है लेकिन असमिया भाषा के एक स्थानीय अख़बार 'असमिया ख़बर' ने अपने संपादकीय में चेतावनी दी है कि इस विधेयक पर आगे बढ़ने की स्थिति में 'सत्तारूढ़ बीजेपी को स्थानीय जनता के ग़ुस्से का सामना करना पड़ेगा.'
इसमें लिखा गया है, "इतिहास गवाह है कि ऐसी सरकारों का क्या होता है जो जनता के ख़िलाफ़ जाती हैं."
अग्रेज़ी भाषी की 'द पायनियर' में असम में इसे लेकर विरोध और 18 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला जलाए जाने की ख़बर छापी गई. 'असमिया प्रतिदिन' की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस क्षेत्र में आठ प्रभावशाली छात्रों के समूह, नॉर्थइस्ट स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन (एनईएसओ) ने सभी सात राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया. इस रिपोर्ट में एनईएसओ कार्यकर्ताओं का हवाला देते हुए कहा कि इस विधेयक को "किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा". पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में इसके विरोध में उतरे अन्य समूहों में कृषक मुक्ति संग्राम समिति, युवा संगठन असम जतियाबाड़ी युवा छात्र परिषद और वामपंथी राजनीतिक गठबंधन समूह वाम-डेमोक्रेटिक मंच शामिल हैं.