
नयी दिल्ली। स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और रोशन सिंह के शहीदी दिवस पर गुरुवार को गैर सरकारी संगठन, नागरिक समूह और विपक्षी दलों एक साथ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करेंगे। विरोध प्रदर्शन का केंद्र नई दिल्ली और मुंबई शहर होंगे। इन तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को 1927 में ब्रिटिश शासन का विरोध करने पर फांसी दे दी गई थी। स्वराज अभियान सहित ऐसे 60 संगठन हैं, जो इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे।
नेशनल एक्शन अगेन्सट सिटिजनशिप अमेंडमेंट (एनएएसीए) अधिनियम ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया, "भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 हमारे संविधान और भारत के समावेशी, समग्र दृष्टि पर हमला है, जिसने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को निर्देशित किया।"
'हम भारत के लोग' के तत्वावधान में होने वाले इस कार्यक्रम को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त है।इस संबंध में मंगलवार को मुंबई में एक बैठक हुई, जिसमें सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने भाग लिया। मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े प्रसिद्ध अगस्त क्रांति मैदान में गुरुवार को यह कार्यक्रम आयोजित होगा।
इसके अलावा नई दिल्ली में सुबह 11 बजे लाल किले से शहीद पार्क तक एक मार्च का आयोजन किया जाएगा। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के इसमें भाग लेने की संभावना है।
'हम भारत के लोग' द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, "19 दिसंबर ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि 1927 में इसी दिन हमारे स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और रोशन सिंह फांसी पर चढ़ गए थे। वे हमारी समृद्ध विरासत के प्रतीक हैं।"बयान में कहा गया है, "यह मुख्य कारण है कि पूरे देश ने भाजपा सरकार द्वारा असंवैधानिक कानून की निंदा करने के लिए इस दिन को चुना है।" एक नेता ने कहा कि यह पहली बार होगा कि लोग सीएए का विरोध करने के लिए सामूहिक रूप से सामने आएंगे।
बिहार
माकपा सहित अन्य वामदलों के नेतृत्व में नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन जारी है। वामदलों के कार्यकर्ता सुबह से सड़कों पर उतरने के अलावा कई ट्रेनों को रोक दिया है। इससे यातायात प्रभावित हो रहा है। यही नहीं, राजद सहित अन्य दल भी नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन पर उतर गए हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ समाजवादी पार्टी समेत कई संगठनों के प्रदर्शन के आह्वान के बीच उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह ने राज्य में किसी भी तरह के प्रदर्शन की इजाजत नहीं है। सिंह ने कहा कि पूरे प्रदेश में 19 दिसम्बर से धारा 144 लगी हुई है।
अत: मैं सभी अभिभावकों से अपील करूंगा कि वे इस दिन अपने बच्चों को कहीं भी जाने के लिये प्रेरित न करें। उन्हें प्रदर्शन में जाने से मना करें, नहीं तो उनके विरुद्ध कार्रवाई होगी। गौरतलब है कि 19 दिसम्बर को समाजवादी पार्टी ने सीएए तथा कुछ अन्य मुद्दों को लेकर हर जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। इसके अलावा कुछ अन्य संगठनों ने भी ऐसे प्रदर्शन का कार्यक्रम की योजना बनाई है।
कल बुधवार को नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में सोमवार शाम हिंसा भड़कने के अगले दिन पड़ोस के आजमगढ़ जिले में भी लोगों ने प्रदर्शन और पथराव किये। पुलिस सूत्रों ने यह जानकारी दी। उधर, प्रतापगढ़ में निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने की कोशिश के आरोप में पांच लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया। वहीं, अलीगढ़ में अब स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है, मगर पिछले 3 दिन से बंद इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं।
पुलिस सूत्रों ने बुधवार को बताया कि मंगलवार शाम आजमगढ़ के मुबारकपुर कस्बे में सीएए के विरोध में स्थानीय लोगों और छात्रों ने प्रदर्शन किया। उन्हें रोकने पहुंची पुलिस पर पथराव भी हुआ। पुलिस ने हल्का बलप्रयोग कर प्रदर्शनकारियों को खदेड़ दिया। उन्होंने बताया कि इससे पहले सोमवार को भी शहर कोतवाली क्षेत्र में शिबली कॉलेज के बाहर भी भड़काऊ प्रदर्शन किया गया था।
सूत्रों के मुताबिक इस प्रदर्शन में मुबारकपुर से बसपा विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी मौजूद थे। इन दोनों घटनाओं को लेकर मामले दर्ज किए गये हैं। पुलिस अधीक्षक त्रिवेणी सिंह ने बताया कि वीडियो फुटेज के आधार पर आजमगढ़ शहर में 20 और मुबारकपुर में 30 लोगों को चिह्नित किये गये हैं। मुबारकपुर में 10 लोगों को हिरासत में लिया गया है।
इस बीच, जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने बताया कि सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों के मद्देनजर आज दोपहर जिले में इंटरनेट सेवाएं अगले आदेश तक बंद कर दी गयी हैं। जिले में अब हालात सामान्य हैं। दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर हाल में हुई पुलिस कार्रवाई के विरोध में आजमगढ़ से सटे मऊ जिले के दक्षिणटोला में प्रदर्शन के दौरान सोमवार शाम हिंसा भड़की थी।
प्रदर्शनकारियों ने दक्षिणटोला थाने में जमकर तोड़फोड़ करते हुए उसमें आग लगाने की भी कोशिश की थी। वहीं, गत रविवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के बाद आज बन्ना देवी थाना क्षेत्र के सराय रहमान और दिल्ली गेट थाना क्षेत्र के शाह जमाल इलाके में सीएए के खिलाफ छुटपुट प्रदर्शन हुए।
हालांकि जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को अपना-अपना ज्ञापन सौंपने के बाद प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन समाप्त कर दिया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आकाश कुलहरी ने बताया कि जिले में स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है और कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। हालांकि जिले में पिछले 3 दिन से बंद इंटरनेट सेवाएं अभी शुरू नहीं हुई है।
उधर, प्रतापगढ़ से प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक जिले में धारा 144 के तहत लागू निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने के आरोप में 5 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया इनमें एआईएमआईएम के जिला अध्यक्ष इसरार अहमद भी शामिल हैं।
असम
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में असम में लाखों प्रदर्शनकारी बुधवार को सड़कों पर उतर आए जबकि राज्य सरकार के कर्मचारियों ने काम रोक दिया, जिससे सरकारी कामकाज प्रभावित हुआ। अखिल असम छात्र संघ (आसू) द्वारा आहूत ‘गण सत्याग्रह' के तीसरे और अंतिम दिन शहर में लाटासिल प्लेग्राउंड से दिगलीपुखुरी तक मार्च करने के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी।
अपने पारंपरिक परिधान ‘मेखेला चादर' पहनीं महिलाएं मार्च के दौरान जय आई असम (असम माता की जय) का नारा लगाते हुए आगे चल रही थीं। मारवाड़ी युवा मंच, पूर्वोत्तर हिंदुस्तान समाज के सदस्यों के साथ-साथ मुस्लिमों, गोरखाओं, सिखों, जैनों जैसे समुदायों के प्रतिनिधियों ने भी यहां विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
‘जन सत्याग्रह' में भाग लेने के लिए जोरहाट, गोलाघाट, लखीमपुर, सिबसागर, धेमाजी, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, बारपेटा, मोरीगांव और बोंगाईगांव जिलों में लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे, जिसके चलते सड़क यातायात बाधित हुआ। सदौ असम कर्मचारी परिषद और असम सचिवालय सेवा संघ के तत्वावधान में असम सरकार के कर्मचारियों ने नागरिकता कानून के विरोध में हड़ताल किया।
प्रमुख साहित्यिक संगठन असम साहित्य सभा ने एक धरना आयोजित किया और बाद में संशोधित नागरिकता अधिनियम को वापस लेने की मांग करते हुए एक जुलूस निकाला। विरोध प्रदर्शन में वकीलों, डॉक्टरों, छात्रों, कलाकारों और साहित्यकारों ने भाग लिया। आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा कि ‘गण सत्याग्रह' बुधवार को संपन्न हो गया, ‘‘हम इस अधिनियम को वापस नहीं लिए जाने तक राज्य भर में अपना आंदोलन जारी रखेंगे।''
पश्चिम बंगाल
नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में बुधवार को भी प्रदर्शन जारी रहा, हालांकि हिंसा की कोई बड़ी खबर नहीं है। राज्य में जनजीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। कुछ इलाकों में इंटरनेट सेवाएं बहाल हो गई हैं। मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तरी दिनाजपुर के अशांत इलाकों में इंटरनेट सेवाएं आंशिक तौर पर बहाल हो गई हैं।
उत्तरी 24 परगना में बशीरहाट और बारासात और दक्षिणी 24 परगना में कैनिंग में सेवाएं शुरू हो गई हैं। हालांकि, इंटरनेट सेवाएं हावड़ा में बंद रहीं। नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद रविवार से इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया था। भाजपा के दो प्रतिनिधिमंडल जब मालदा और मुर्शिदाबाद के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने जा रहे थे, तब उन्हें पुलिस ने रोक दिया।
सांसद निशीथ प्रामाणिक और खगेन मुर्मू को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें से एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्त्व भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और सांसद सौमित्र खान कर रहे थे, जिन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। लोगों ने उनके खिलाफ ‘‘वापस जाओ'' के नारे लगाए। विजयवर्गीय को नबग्राम और मौरग्राम में रोक दिया गया, जिन्होंने कहा, ‘‘हमें क्षेत्रों में जाने की अनुमति नहीं थी।
पुलिस कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है। घुसपैठियों ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया और हमारे काफिले पर हमला करने की कोशिश की। पुलिसकर्मी सिर्फ मूकदर्शक बने रहे।'' इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार तीसरे दिन सड़कों पर उतरीं। उन्होंने हावड़ा मैदान से कोलकाता के एस्प्लेनेड तक एक विशाल रैली का नेतृत्व किया। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर प्रहार करते हुए कहा कि उनका काम देश में आग लगाना नहीं, बल्कि इसे शांत करना है।
उन्होंने सोमवार और मंगलवार को भी इस कानून के विरोध में मार्च किया था। उत्तर दिनाजपुर जिले में, नागरिकता कानून के खिलाफ निकाले गए एक विरोध मार्च में देशी बम फेंके जाने से पांच लोग घायल हो गए। पुलिस ने बताया कि वह इस मामले की जांच कर रही है। सड़क और रेल सेवाएं बाधित किए जाने की घटनाओं की वजह से पिछले कुछ दिनों से राज्य की परिवहन व्यवस्था प्रभावित हुई है।
राज्य भर में नागरिकता कानून के खिलाफ कई प्रदर्शन और धरना आयोजित किए गए। दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया परिसर के अंदर हुई पुलिस कार्रवाई के विरोध में जादवपुर विश्वविद्यालय और सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविजन संस्थान के छात्रों का धरना तीसरे दिन भी जारी रहा। पुलिस ने राज्यभर में सुरक्षा कड़ी कर दी है और हिंसा के लिए अभी तक करीब 354 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है। प्रदर्शन के कारण कई ट्रेनें भी निलंबित की गई हैं।
केरल
नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में यहां के एक कॉलेज में संगोष्ठी आयोजित करने के लिए भाजपा की छात्र शाखा एबीवीपी के एक समूह पर माकपा समर्थित एसएफआई के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर हमला कर दिया, जिसमें एबीवीपी के तीन सदस्य घायल हो गए। त्रिशूर स्थित केरल वर्मा कॉलेज में हुई इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस हमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने यहां सचिवालय तक मार्च किया और पुलिस घेरे को तोड़ने की कोशिश की।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में असमी समुदाय के सदस्यों ने नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ बुधवार को प्रदर्शन किया। उन्होंने दावा किया कि इस अधिनियम ने असम की संस्कृति को खतरे में डाल दिया है और पूर्वोत्तर के राज्यों की भावनाओं को नजरअंदाज किया है। प्रदर्शन कर रहे असमी लोगों का कहना है कि इस नये कानून से असम की परंपरा, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को नुकसान पहुंचेगा।
समुदाय के लगभग 200 सदस्यों ने जे एम रोड स्थित संभाजी गार्डन के बाहर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया, प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर छात्र और नौकरीपेशा लोग थे। यह विरोध प्रदर्शन पुणे की असमी समाज एलयूआईटी द्वारा किया जा रहा था। प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा, “यह अधिनियम असम की संस्कृति को सीधे तौर पर खतरे में डालता है। प्रवासियों को बसाने से, चाहे वह किसी भी धर्म के हों, असम के मूल निवासियों की जातीय, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को नुकसान पहुंचेगा।”
प्रदर्शनकारियों में शामिल बिद्युत सैकिया ने कहा, “बहुसामुदायिक राज्य असम के लोगों की भावनाओं की परवाह किए बिना सरकार ने इस कानून को लागू कर दिया है और हम इसका विरोध करते हैं।” उन्होंने कहा कि विभिन्न समुदायों और धर्मों के लोगों ने शांति और सद्भाव से असमी समुदाय के साथ रहकर असमिया संस्कृति को अपनाया है और असमी लोगों ने भी ऐसा ही किया है। प्रवासियों को शामिल करने से हमारी असमी संस्कृति, विरासत और पहचान को सीधा खतरा है।
उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन किसी धार्मिक मुद्दे पर नहीं था। उन्होंने कहा, ‘‘हम अवैध प्रवासियों के खिलाफ हैं चाहे वह बांग्लादेश से आया मुस्लिम हो या हिंदू हो।'' सैकिया ने कहा कि 1979 और 1985 के बीच असम में बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ बड़ा आंदोलन हुआ था। उन्होंने कहा, ‘‘जब असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे तो यह निर्णय लिया गया था कि 1971 से पहले राज्य में आए बांग्लादेशियों को ही यहां रहने की अनुमति दी जाएगी और 1971 के बाद किसी को भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”
सैकिया ने दावा किया कि कांग्रेस के शासनकाल में बांग्लादेश से अवैध प्रवासी आते रहे और अब यह इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि असम के मूल निवासी ही 14 जिलों में अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 2014 में जब भाजपा सत्ता में आई थी तो यह वादा किया था कि सभी बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य से बाहर निकाल दिया जाएगा। लेकिन पांच साल हो गया है और एक भी बांग्लादेशी को बाहर नहीं निकाला गया है। उन्होंने कहा, ‘‘अब इस कानून की मदद से यहां रह रहे बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है।”
समुदाय के एक अन्य सदस्य तन्मय गोस्वामी ने कहा कि असम आंदोलन (1979-85) में घुसपैठ मुक्त राज्य की उम्मीद में 855 लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था । संशोधित नागरिकता अधिनियम उनके बलिदानों का अपमान है। ठाणे जिले के मुंब्रा में प्रदर्शनकारियों ने एनआरसी और संशोधित नागरिकता अधिनियम के विरोध में बैनर और तख्तियां लेकर सरकार विरोधी नारे लगाए।
विरोध मार्च शिमला पार्क से शुरू होकर रेलवे स्टेशन के पास समाप्त हुआ। क्षेत्र में अधिकांश दुकानें बंद रहीं और सड़कों पर वाहनों की आवाजाही कम रही। रैली में वक्ताओं ने दावा किया कि संशोधित नागरिकता अधिनियम और एनआरसी हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित करने के लिए ही बनाया गया है। संशोधित नागरिकता अधिनियम के खिलाफ कई विश्वविद्यालयों सहित देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में सैकड़ों छात्रों ने मशाल लेकर जुलूस निकाला। पुणे जिले के बारामती से राकांपा सांसद सुप्रिया सुले ने भी मशाल जुलूस में हिस्सा लिया। इसमें हिस्सा लेने वालों ने हाथ में मशाल और तख्तियों के साथ “नो ह्यूमन इज इलिगल”, “इंकलाब जिंदाबाद” और “सीएए वापस लो” जैसे नारे लगाए। पत्रकारों से बात करते हुए सुले ने रेल राज्य मंत्री सुरेश अंगड़ी के एक बयान का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि प्रदर्शन के दौरान रेलवे संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले को देखते ही गोली मारने को कहा गया है।
सुले ने कहा, ‘‘मैं उन्हें चुनौती देना चाहती हूं कि हम यहां विरोध कर रहे हैं और अगर आप में साहस है तो हमें गोली मार दीजिए।'' राकांपा नेता ने मांग की, ‘‘जामिया मिल्लिया के छात्रों पर अत्याचार करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए।'' सुले ने यह भी कहा कि नई दिल्ली में जो कुछ भी हो रहा है उसकी पूरी जिम्मेदारी गृह मंत्रालय की है।
उन्होंने छात्रों से शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन करने और किसी के बहकावे में नहीं आने का आग्रह नहीं किया। पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में कई मुस्लिम संगठनों ने विरोध मार्च निकाला। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि नागरिकता अधिनियम संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है और यह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है। मुस्लिम समुदाय के नेता मुफ़्ती सैय्यद अहमद अली काज़ी ने बताया कि लगभग 40,000 लोगों ने विरोध मार्च में भाग लिया।