
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले को चुनौती देने की तैयारी में है, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की गई थी। यह फैसला 8 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया था। सरकार का मानना है कि यह निर्णय राष्ट्रपति के "पूर्ण वीटो" अधिकार को सीमित करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत उन्हें प्राप्त है।
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर कर सकती है। केंद्र का तर्क है कि इस मामले में राष्ट्रपति की ओर से पक्ष नहीं सुना गया, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में असंतुलन उत्पन्न हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि यदि राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजते हैं और राष्ट्रपति उस पर निर्णय नहीं लेते, तो राज्य सरकार सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है। केंद्र सरकार इस प्रावधान पर भी पुनर्विचार की मांग कर सकती है, क्योंकि इससे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन प्रभावित हो सकता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार (Article 142) का उपयोग करते हुए तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा लंबित रखे गए 10 विधेयकों को मंजूरी प्रदान की थी, जो भारत में पहली बार हुआ है। इनमें से कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत भी किया गया था।